लेकर मृदु आह्वान, आ रही सेनाओं का भार घटाओ।
काल- निकष पर चढ़ो असंशय, पार्थ! अभी गाण्डीव उठाओ!1॥
अपने तल की परख करो,
अभिनय का लोभ विवेक नहीं ।
मृषा मोह अनुशीलित पथ पर,
मूर्च्छित लौ का शोध कहीं ?
मदिरा पर हठ की जिज्ञाशा, तजो अभी, खुलकर मुस्काओ!
काल- निकष पर चढ़ो असंशय, पार्थ अभी गाण्डीव उठाओ॥2॥
सारा ध्यान मर्त्य पर केन्द्रित
बातें कितनी ऊँची करते!
दिखे नहीं गाम्भीर्य प्रवाहित,
किस आरोपित सर में तरते?
भ्रम को तज, यथार्थ के तल पर आओ!, अब कुछ पाओ।
काल- निकष पर चढ़ो असंशय, पार्थ! अभी गण्डीव उठाओ!3॥
युद्ध हेतु सन्नद्ध खड़े जो,
उनकी प्रेरक गति को मानो।
अपने तल पर युद्ध करेंगे,
यह अद्भुत सच्चाई जानो।
झूठे नाटक छोड़ो, अपना धर्म लखो! पथ पर बढ़ जाओ।
काल- निकष पर चढ़ो असंशय, पार्थ! अभी गाण्डीव उठाओ!4॥
द्वन्द्व- ग्रसित, हे! जटिल मनस्वी!
मृषा- दृष्टि में अपना कौन?
'सत्यवीर' इक बिन्दु तुम्ही हो,
जिसमें मुखरित प्रीतम मौन।
वह विराट तुम स्वयं, भँवर की रचना पर अंकुश बन छाओ।
काल- निकष पर चढ़ो असंशय, पार्थ! अभी गाण्डीव उठाओ!5॥
अशोक सिंह 'सत्यवीर'
{पुस्तक: 'पथ को मोड़ देख निज पिय को' से}
मोबाइल- 08303406738
