* पावस की अनुरीति भली *
किस पुकार पर पिय पिघलेगा? पुष्प बनेगी सूत्र कली।
पियहित अंतिम पथ लगता है , पावस की अनुरीति भली।।१।।
पावस की अविरल धारा में,
प्राण करें जब-जब अवगाहन ।
इक-इक ग्रंथि भंग होती तब,
रुग्ण दशा का होता निरसन।
लो पल भर के स्वास-वास पर, रूठी वीणा फिर मचली।
पियहित अंतिम पथ लगता है , पावस की अनुरीति भली ।।२।।
सतत् मेह की अनुकम्पा में,
कुम्भक भाव निवास करे।
अनजानी गहराई व्यापे,
लो! मन के व्यापार मरे।
अब हठात् प्रतिषेध विराजे, मिली दशा जब यह विरली।
पियहित अंतिम पथ लगता है , पावस की अनुरीति भली ।।३।।
ऋद्धि-सिद्धि ले कूके कोकिल,
बेसुधि किन्तु अकाट्य रहे।
इसी दशा में छद्म जागरण ,
की आहट पर ध्यान रहे ।
तीन शूल आवाज दे रहे, पर संवेदी ग्रन्थि जली।
पियहित अंतिम पथ लगता है , पावस की अनुरीति भली ।।४।।
अंतर्ताप ताप ले डूबे,
हेमलोक का करे प्रसार ।
जल-थल भेद निवारित है अब,
लगे चेतना कुछ निर्भार।
मचले चक्र अनाहत पल में, कर्कशता पल में पिघली।
पियहित अंतिम पथ लगता है , पावस की अनुरीति भली ।।५।।
‘सत्यवीर ‘ विश्रृंखल होकर,
बिखरे पहरे हुए असार ।
वेदवती वाणी ले गरजे,
शांत गुहा अब करे पुकार ।
सुरतिसिद्धि में प्रियतम व्यापे, मादक- मारक मृत्यु टली।
पियहित अंतिम पथ लगता है , पावस की अनुरीति भली ।।६।।
☆ अशोक सिंह सत्यवीर
(पुस्तक – ‘ पथ को मोड़ देख निज पिय को ‘)