* नाच उठा हृदय आज *
बन्धन के खुलने की आहट पर बजे बाज।
नाच उठी आत्मा,नाच उठा हृदय आज।।१।।
आघोषित, जीवन में,
जीवन की परिभाषा।
प्रतिपल वैकुंठ घटित,
अब हो किसकी आशा?
ऐसे में शान्त हुआ, भावों का चिर समाज।।२।।
जनरव से उदासीन,
निर्जन में छिड़े तार।
जाने कब मृत्युंजयती,
उतरी ले समाचार?
अब हैं नि:सार यहाँ, आरोपित सभी साज।।३।।
पवनपुत्र ला सकते,
संजीवनि याद करो।
मूर्छा उपचारित हो,
अब तो संधान करो।
'सत्यवीर' प्रश्न उठे, उतरेगा तब जहाज।।४।।
भुक्ति-मुक्ति अर्थहीन,
जिस पल गति प्रगति करे।
दृष्टिसाध्य मुक्ता पर,
मुदिता ही विमति हरे।
विषपायी शिव से ले कौन? किस तरह व्याज?।।५।।
अशोक सिंह सत्यवीर
06/10/2015