* सनातन छन्द कि नव उद्गार *
कर्म का मर्म, साधना-कर्म,
श्वास का धर्म, श्वास रुक जाय।
करेगा कौन? रहो अब मौन,
मिले जब भौन, अमन उर छाय॥1॥
मिटी जब आस, लखो विश्वास,
नहीं परिहास, कि अवसर जान।
मोद की गोद, असत्य विनोद,
सहज यह शोध, रुचिर पहचान॥2॥
नृत्य घट बीच, कि लो उर सींच,
पाद कुछ भींच, कि हो अवतार।
अहा! यह गंध, कि कितनी मंद?
सनातन छन्द, कि नव उद्गार॥3॥
मिटा मन आज, बजे उर साज,
कि कैसी लाज?, फूटते गीत।
सुनो! दे ध्यान, मधुर आह्वान,
अमर का गान, मिला अब मीत॥4॥
मिटे जब भाव, विलुप्त अभाव,
नियम की नाव, हीन आभार।
शीलहत हंस, मर गया कंश,
कृष्ण का वंश, हुआ अब पार॥5॥
रचयिता: अशोक सिंह 'सत्यवीर'
{पुस्तक: 'पथ को मोड़ देख निज पिय को' से}
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