* आत्म-ज्ञान पर करें विचार *
यत्नपूत गति की अभिलाषा, हो उपलब्ध अखण्ड-अपार।
इकलौते तल पर अर्पित हो, आत्म-ज्ञान पर करो विचार।।१।।
पूर्ण शुद्ध स्थिति कहलाती,
'आत्म-ज्ञान' की दशा अमान।
उसे ज्ञान ही कह सकते हो,
'आत्मा' शब्द कहे अभिमान।
जहाँ अहंता की ध्वनि गुंजित, वहाँ कहाँ आत्मा अविकार?
इकलौते तल पर अर्पित हो, आत्म-ज्ञान पर करो विचार।।२।।
स्वत्व स्वयं ही विगलित होता,
जब अविकार अशेष रहे।
अनाकारता अनायास ही,
चिदाकाश में नित्य बहे।
ऐसे में व्यापार कहाँ हो, जब प्रियतम से हो अभिसार?
इकलौते तल पर अर्पित हो, आत्म-ज्ञान पर करो विचार।।३।।
जड़ता में आरोपित होकर,
चेतन की कर रहे उपेक्षा।
स्वरमयता सध गयी कहाँ तक,
समय-समय पर करो समीक्षा।
निर्गुण नहीं, अगुण को जानो, स्वतः घटेगा गुण अपहार।
इकलौते तल पर अर्पित हो, आत्म-ज्ञान पर करो विचार।।४।।
"सत्यवीर" विज्ञान स्वयँ का,
परखो, धरो हृदय में आर्जव।
स्रोत बोध का स्वतः मिलेगा,
विहँसे अकामता का उत्सव
जन्म-मृत्यु का भेद खुले कब? हंस उड़े कब पंख पसार?
इकलौते तल पर अर्पित हो, आत्म-ज्ञान पर करो विचार।।५।।
अशोक सिंह सत्यवीर
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